हुस्न वालों ये न समझो मैं तेरे काबिल नहीं, है मेरी भी एक मंज़िल पर अभी हासिल नहीं। लग रही है रोज डुबकी प्यार के मझधार में, रोज़ मरता हूँ अकेला क्या जीत क्या हार में तैरकर आता मैं ऊपर पाता हूँ मझधार में, लोग दीवाने हो बैठे है मेरे ही उस प्यार में देखता हूँ जाते उनको खोये हैं जो रूप में तरसेंगे वो देखने को *योगेश* के दीदार में । - योगेश खातोदिया "वक़्त को आने दो" - योगेश खातोदिया