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माना तेरे और मेरे हाथ दूर बहुत है... थामना मगर मैं

माना तेरे और मेरे हाथ दूर बहुत है...
थामना मगर मैं फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे मेरे कंधे के बीच फ़ासले बहुत हैं
पहुचना तुम तक मैं फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे और मेरे कदमो के बीच जमीन बहुत है...
कदम बढ़ाना मै फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे और मेरे ख़्वाब अलग बहुत है...
बनना तेरा ख़्वाब मैं फिर भी चाहती हूँ
माना ख़याल तेरे मेरे मिलते बहुत कम है...
रखना ख्याल तेरा फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे  मेरे बीच मे मुश्किल बहुत है...
उलझना उनसे मैं फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे मेरे दिल की हालत बुरी है...
तुझे अपना बनाना मैं फिर भी चाहती हूँ
माना जमाना बहलाता है बस ...
इसलिए तुझे अपना और खुदको तेरा आईना बनाना चाहती हूँ
-siya









                                           guftugu_e_ishq #Love #LoveStory #ishq #Poetry #poem #Guftugu #longform
माना तेरे और मेरे हाथ दूर बहुत है...
थामना मगर मैं फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे मेरे कंधे के बीच फ़ासले बहुत हैं
पहुचना तुम तक मैं फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे और मेरे कदमो के बीच जमीन बहुत है...
कदम बढ़ाना मै फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे और मेरे ख़्वाब अलग बहुत है...
बनना तेरा ख़्वाब मैं फिर भी चाहती हूँ
माना ख़याल तेरे मेरे मिलते बहुत कम है...
रखना ख्याल तेरा फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे  मेरे बीच मे मुश्किल बहुत है...
उलझना उनसे मैं फिर भी चाहती हूँ
माना तेरे मेरे दिल की हालत बुरी है...
तुझे अपना बनाना मैं फिर भी चाहती हूँ
माना जमाना बहलाता है बस ...
इसलिए तुझे अपना और खुदको तेरा आईना बनाना चाहती हूँ
-siya









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