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हम तो रोज़ आंसुओ को शायरी बनाकर मोहब्बत का पैग़ाम

हम तो रोज़ आंसुओ को शायरी बनाकर मोहब्बत का पैग़ाम लिखा करते हैं।
अपने उस गुमशुदा से महबूब को एक अधूरा सलाम लिखा करते हैं।
डरते हैं इस है ज़माने से कहीं बेवफ़ाई के इस दौर में हमारी एक तरफा मुहब्बत गुमनाम ना हो जाए।



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 shayari
हम तो रोज़ आंसुओ को शायरी बनाकर मोहब्बत का पैग़ाम लिखा करते हैं।
अपने उस गुमशुदा से महबूब को एक अधूरा सलाम लिखा करते हैं।
डरते हैं इस है ज़माने से कहीं बेवफ़ाई के इस दौर में हमारी एक तरफा मुहब्बत गुमनाम ना हो जाए।



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