गज़ल अपने दिल के ग़मो को, मैं किससे बयां करूं। कौन समझे दिल के जज़्बात को, मैं किससे गिला करूं।। अपने दिल के... समझा था जिसको ज़िंदगी हमने, पलभर में मौत दी उसने। अपने नैनों के अश्कों को, मैं किससे बयां करूं।। अपने दिल के... याद उसकी हर घड़ी आती है, मुझको कितना वो सताती है। अपने मन की तड़प को, मैं किससे बयां करूं।। अपने दिल के... इश्क क्यों मुझको हुआ ये ख्याल आता है, वक़्त भी अब न मुझको भाता है। इस मोहब्बत के अंज़ाम को, मैं किससे बयां करूं।। अपने दिल के... -पं. शिवेन्द्र मिश्र "मनमोहन" गज़ल