रिश्तों की आड़ में,औरत को कितना दबाओगे? समाज वालों!अब तो रुक जाओ कितना सताओगे?अब तो रुक जाओ। सपनों को उसके कुचलकर, बंधन की बेड़ियां पहना दी। बहू बेटियां घर की इज्जत हैं, घर में ही उनकी खुशियां दफना दी। अरे!इक तरफा पुरूषत्व लेकर कौन सा समाज रचाओगे? अब तो रुक जाओ समाज वालों ! अब तो रुक जाओ कितना सताओगे? अब तो रुक जाओ किसी अनजान मर्द से बोले तो चरित्रहीन, कहकर पवित्र समाज रचाते हो। फिर किसी अनजान के ही हाथों, उसका जीवन थमाते हो। रीत परम्परा की आड़ में कितना रुलाओगे? समाज वालों! अब तो रुक जाओ कितना सताओगे?अब तो रुक जाओ सामाजिक रथ के दो पहिए, स्त्री और पुरूष। एक पहिए को तोड़कर,क्या इक पहिए पे समाज चला पाओगे? अब तो रुक जाओ। समाज वालों!अब तो रुक जाओ।। #womanempowerment