प्रेम वही ईश्वरीय भावना है, अपने रिश्ते के पहले दिनों में महसूस करते हैं, प्रेम अंततः ईश्वरीय ही है, तरीका बदलता है बस, बाकी महसूस करते हैं। साथी द्वारा मिले वक्त को सहेजना है, दूसरो से अपेक्षाएं रखना सर्वथा अनुचित है, यदि अब प्रेम का कहीं और नज़राना है, उस साथी को धोखा भी सर्वथा अनुचित है। श्वास प्रेम की उसे ही थामना है, प्रेम उससे जो सदा सब भुला जो अपनाता है, उसका सत्य प्रेमरूप में स्वीकारना है, यदि भटके वो तो उसे चोला प्रेम का पहनाना है। प्रेम वो अपने साथी जो लुटाया जाए, जो सब पर बिखरता रहे वो गलत परिभाषा है, यदि निगाहें कहीं और अपेक्षा रखे, तो ये कैसा प्रेम? ये सारी गलत ही आशा हैं। #yqdidi #yqbaba #प्रेम #प्रेमलेखन #प्रेम_पर_चिंतन #extramaritalaffairs