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मैं अविरल, मैं स्वच्छंद।। मैं उन्मुक्त, स्वच्छंद,

मैं अविरल, मैं स्वच्छंद।।

मैं उन्मुक्त, स्वच्छंद, अविरल, भावुक,
बन्ध पाऊँ कैसे गागर के पानी मे।
मेरा ध्येय अनन्त, मेरी दिशा अनन्त,
बह जाऊं जैसे सागर के पानी मे।

सूक्ष्म सचेतन ज्वलित दीप लिए कर,
तम हरने का अडिग विश्वास लिए,
जीवन पथ को पग पग नापा करता हूँ,
धमनियों में स्वबल का अट्टहास लिए।

पथद्रष्टा नहीं, संगगामी नही, स्वामी स्वयं,
हर बाधा अविरल तय कर जाता हूँ।
जगबंधु, कण कण निजरूप की छाया में,
काम क्रोध गरल भी क्षय कर जाता हूँ।

है अविनाशी कोई अम्बर में, तो हो,
स्वरचित छंदों से वज्र की संज्ञा पाता हूँ।
ना कोई दधीचि, ना कोई अश्वत्थामा,
निजकर्मो से भेदित, जग की प्रज्ञा पाता हूँ।

हर चौखट मेरा डेरा, हर मन मेरा सराय,
कह पाऊँ कैसे एक कहानी में।
मेरा ध्येय अनन्त, मेरी दिशा अनन्त,
बह जाऊं जैसे सागर के पानी मे।

©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote मैं अविरल, मैं स्वच्छंद।।

मैं उन्मुक्त, स्वच्छंद, अविरल, भावुक,
बन्ध पाऊँ कैसे गागर के पानी मे।
मेरा ध्येय अनन्त, मेरी दिशा अनन्त,
बह जाऊं जैसे सागर के पानी मे।

सूक्ष्म सचेतन ज्वलित दीप लिए कर,
मैं अविरल, मैं स्वच्छंद।।

मैं उन्मुक्त, स्वच्छंद, अविरल, भावुक,
बन्ध पाऊँ कैसे गागर के पानी मे।
मेरा ध्येय अनन्त, मेरी दिशा अनन्त,
बह जाऊं जैसे सागर के पानी मे।

सूक्ष्म सचेतन ज्वलित दीप लिए कर,
तम हरने का अडिग विश्वास लिए,
जीवन पथ को पग पग नापा करता हूँ,
धमनियों में स्वबल का अट्टहास लिए।

पथद्रष्टा नहीं, संगगामी नही, स्वामी स्वयं,
हर बाधा अविरल तय कर जाता हूँ।
जगबंधु, कण कण निजरूप की छाया में,
काम क्रोध गरल भी क्षय कर जाता हूँ।

है अविनाशी कोई अम्बर में, तो हो,
स्वरचित छंदों से वज्र की संज्ञा पाता हूँ।
ना कोई दधीचि, ना कोई अश्वत्थामा,
निजकर्मो से भेदित, जग की प्रज्ञा पाता हूँ।

हर चौखट मेरा डेरा, हर मन मेरा सराय,
कह पाऊँ कैसे एक कहानी में।
मेरा ध्येय अनन्त, मेरी दिशा अनन्त,
बह जाऊं जैसे सागर के पानी मे।

©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote मैं अविरल, मैं स्वच्छंद।।

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बन्ध पाऊँ कैसे गागर के पानी मे।
मेरा ध्येय अनन्त, मेरी दिशा अनन्त,
बह जाऊं जैसे सागर के पानी मे।

सूक्ष्म सचेतन ज्वलित दीप लिए कर,

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