‘या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्ये, नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नम: ॥’ हे दुर्गे! हे प्रकृते! तेरे तीनों गुण- सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण क्रमश: सुख, दु:ख और मोह स्वभाव वाले हैं ! प्रकाशक, प्रवर्तक एवं नियामक भी हैं। सत्वगुण का कार्य प्रकाश (प्रकट) करना, रजोगुण का कार्य प्रवर्तन करना तथा तमोगुण नियमन कर्ता है। तेरी शक्ति से ही शिव भिन्न-भिन्न रूप में विश्व बनता है। तेरे से बाहर विश्व में चेतन-अचेतन कुछ नहीं है। ( कैप्शन देख ही लें) क्रमशः-----01 (#या देवी सर्व भूतेषु ) हे दूर्गे ! हे शक्ति ! आजादी के समय देश ने कुछ सपने देखे थे। राष्ट्र का संचालन हमारे चिन्तन और संस्कृति के अनुकूल होगा। इसी के अनुरूप ज्ञान की धारा बहेगी। कोई गरीब नहीं रहेगा। किसी का शोषण नहीं होगा। मेहनती, चरित्रवान और बुद्धिप्रधान युवा शक्ति देश का नेतृत्व करेगी। आज वह बेरोजगार घूम रही है।