रेत के धोरे मुंह फुलाये बैठै हैं इस सरद रात में, चांद की किरणें बहा रही हैं आंसू किसी ठूंठ की बांहों में उलझ कर, हवा का दम घुट रहा है कि जैसै चुरा लिया हो किसी ने संगीत उसका मैं भी तो हूं परेशान दूर परदेस में कहीं ! तुम हो कि नजरें फेरे सब बिसराये बैठी हो वहां और तुम्हारी गैर मौजूदगी में सब उलझा-उलझा सा है यहां !! सब उलझा-उलझा सा है