प्रेम सफर 1 जब हम पहली बार मिले समय वह इम्तिहान का था तुम बात मुझसे कर रहे थे मेरा ध्यान कही और था लम्बा अरसा गुजर गया उस दिन से आज तक मै बैठा रहा प्रेम प्रभा की आकांक्षा में कुटुम्ब, निकेत,पथ सब भूल बैठा रहा मै भूले पथिक को पत कौन सुझाये प्रिया को मेरी ये प्रेम गाथा कौन सुनाये संध्या हो गईं,रजनी का तम फेल रहा है बता तो तुम्हारे मन में क्या चल रहा है दिल के किसी कोने में मैरा प्रेम पल रहा है तुम को मेरे दिल को लिख दिया मैने ध्यान से पढ़ना तुम्हारा नाम मिलेगा जल्दी बता देना मुझे और चलना है तुम्हारी हा रही तो ............. कविता पूरी होगी नहीं तो ना कविता ना प्रेम सफ़र शिवराज खटीक #प्रेमसफर