ख्वाहिशों के बोझ तले ये जिंदगी सिमट गई, कम्बख्त़ ये ख्वाहिशें फिर भी कम नहीं हो रहा। बस एक की हौड़ में नित्य नवल तृष्णा को जोड़ा, रोज नई दुल्हन के रूप में मुझसे आ लिपट गई।। #ख्वाहिश