दिखाया फिर से अपना खेल, इस बार कुदरत ने। कराया पूरब पश्चिम में मेल, इस बार कुदरत ने।। हिल सकती नहीं पत्ती, मर्जी के बिना जिनकी, करायी उनकी भी है जेल, इस बार कुदरत ने।। समझते थे जो खुद को, दर्जे में बड़ा ऊपर, किया है तिकड़म सारा फेल, इस बार कुदरत ने।। पैर को चांद पे रखकर, मंगल छूने की हसरत थी, निकाला उनका भी है तेल, इस बार कुदरत ने। थी उम्मीद न जिनको, अभी आजाद होने की, करा दी उनकी भी है बेल, इस बार कुदरत ने। नफरत को लिए दिल में, आग दिन रात उगली थी, करा दी, बंद की सेल, इस बार कुदरत ने। छोड़ा जब भी इंसां ने, खुदगर्जी में कुदरत को, दिखाया ऐसा ही है खेल, हर बार कुदरत ने।। VK SAmRAT शुभ रात्रि दोस्तों