कोरोना ,,,,,,,,,,,,, सूनी सूनी राहें कुछ कहती हैं बस्ती में सन्नाटे की धुन बजती है सहमी सहमी हवा बह रही धीरे धीरे घर में कैद परिंदों की ये जंजीरे खुशियों का चहचहा नही दिखता है अब किलकारी बच्चों की मूक बनी है अब सूरज कब उग आता है छज्जे पर अपने पता नही चलता लगता है सब ये सपने इंशानों की चहल पहल बंध गइ घरों में पढे लिखों की सभी अकल झुक गइ दरों में पास पास रहकर दूरी सहने की आदत गाते हैं सब गीत सभी मिल एक स्वरों में आलोकजी शास्त्री इन्दौर 9425069983