वह उसकी ज़िन्दगी का महज़ क़िस्सा नहीं कहानी बनना चाहती थी , वक़्त के साथ रुक जाए वह नहीं रवानी बनना चाहती थी।। दौर-ए मुश्किल तो परख़ है ख़ुदा की, कि वह उस दौर में उसकी आसानी बनना चाहती थी।। साथ चलते वह तो ज़माना हैरान रह जाता , कि वह लोगों की वजह-ए हैरानी बनना चाहती थी।। शुरुआती रौनकों का क्या करना जनाब? वह तो उसकी आखिरत की जवानी बनना चाहती थी।। बाहरी इश्क़ की कहां चाह थी कभी उसे, वह तो इश्क़ उसका रूहानी बनना चाहती थी।। ख्वाहिशों के दरख़्त के पत्ते अक्सर चंद लम्हों में गिर जाया करते हैं, ताउम्र वफ़ा कर वह तो उसकी ज़िंदगानी बनना चाहती थी।। हवा के झोंके तो बारिशों से पहले भी आया करते हैं, कि वह तो उस बारिश का पानी बनना चाहती थी।। जिसका साथ पाकर ख़ुश रहता हमेशा वह , ख़ुदा की लाज़िम वह मेहरबानी बनना चाहती थी ।। वह उसकी ज़िंदगी का महज़ क़िस्सा नहीं कहानी बनना चाहती थी।। मगर अफ़सोस कि वह कहानी न बन पाई बस इक क़िस्सा बन कर ही रह गई, उसकी मुकम्मल सी ज़िन्दगी का इक अधूरा सा हिस्सा बन के रह गई ।। #क़िस्सा #कहानी #अधूरीख्वाहिशें #इश्क़ #नमुकम्मल #जज़्बात