बैठ बालकनी में देखा एक कबूतर बाज अपनी बाजी खेल रहा था, कबूतरों को बेवजह आसमान में ढकेल रहा था...!! उसको 'भरोसा' था जो अपने हैं वो तो लौट ही आयेंगे, जिनको उड़ना होगा वो तो बिन कहे उड़ जाएगे...!! आज हर कोई इस 'भरोसे' की डोर को आजमा रहा है, जो अपने हैं उनको भी शक के दायरे में पा रहा है...!! रखना संभाल कर ये वो डोर है साहब, जो पतंग को आसमान तक ले जाएगी, जरा सी चूक और कट कर बिखर जाएगी...!! मैंने भी इस 'भरोसे' को कइयो पे आजमाया है, कुछ हैं मेरे पास कइयो से चोट खाया है। जख्म गहरे हैं शायद भर भी जाएगे, पर वो कबूतर शायद वापस ना आयेंगे...!! जिंदगी बड़ी लम्बी है और ये 'भरोसा' बड़ा अतरंगी है, समय-समय पर नए रंग लाता है...!! कई रिस्तो को गाढ़ा और कुछ पे बिना चढ़े बह जाता है...!! -©Saurabh Yadav #People #WOD #trust #sydiary