सुबह जगा तो एक डर का माहौल था, किसी अपरिचित सा डर, हाथ-पैर सुन्न थे, गला रुंधा हुआ सा, बदन पसीने से तरबतर, होंठों में कम्पन्न सा लगा, वो कोई ख्वाब था भयानक सा, कोई परती जमीं थी, गहरी दरारें थीं, लाशें बिछी थी खेतों में, कुछ नरकंकाल बने पड़े थे, हरियाली का नामोनिशान ना था, ऊपर सूरज शीशे सा चमक रहा था, यों लगा जैसे आग बरस रही हो जमीं पर, पांव तप रहा था,गला सूखा पड़ा था, ढूंढा हर तरफ़ कहीं पानी न मिला, धूप से बचूं जो कहीं ठिकाना ना मिला, क्या करूँ-कहाँ जाऊं, सहसा नींद खुली तो बदन तरबतर था, इतना भयानक ये कैसा मंजर था, उठा मुंह धोया,पानी पीया कुछ देर उसी संस्मरण में खोया, लगा वो कोई ख़्वाब नहीं था, था आगाह कुदरत का, अब इंसान ना सम्भला तो वही होगा, जो सपने में दिखा सब सही होगा। -प्रियजीत✍ #NojotoQuote #NojotoHindi वक्त है..सम्भलने का..