जब हम बडें शहरों की भीड में थे। तों घर जाना चाहते थे। अब घर में हैं। तों बाहारी हवाओं सें मिलना चाहतें हैं। ....वैसे यू तों परिंदे कभी मोहताज नही होते ...! लेकिन आज आजाद होते हुए भी कैद है। घरों में हम तों हर महीने की आखिरी तारिख कों खुश हुए जा रहें हैं पर कुछ मासूम हैं। जों आज सिर्फ रोजीं रोटी की उम्मीद कर कर रहें हैं सहज रहें थें पैसा की जीएगें बाद में बनाएंगे किस्सा जों अब तक रहा बस याद में बादें भी रह गये कि मिलिगें हर दिन अब तों बस बैचैनी हैं कि जल्द से कट जाएं यें दिन ...दोड रहें थें सभी यकायक थम गए रिश्तों कें लिए कुछ खून कें तों कुछ हमारे लिए एक दिन फिर याद कीजें यें दिन उबरिगें फिर सें नई ऊर्जा और गगन रूपी सोहेर्द कें साथ हाँ कुछ दूरी रहेगी पर उतनी नही हम फिर बैठेगें चाय कें साथ भारत की जीत पर ऑफिस की गुफ्तगु या सब्जी वालें सें बहस तों कहीं भीड पर गुस्सा तों सिनेमा हॉल में हंसना रोना … रिक्सा ना मिलों पर किस्मत कों कोसना . या फिर Ola. Uber वाले कों पता बताना . यही सब अभी तों थोड़ा समय हैं तब तक अपनी पुरानी खूबसूरत यादों में ही जी लों । खैर यें बातें तों चलती रहेगी और ज्ञान बहता रहेगा अरें हम तो इंसान हैं। विचारों का आना जाना यूँ ही लगा रहेगा ।..... ✍🏻✍🏻गौरव मिश्र . . . bas # foryou