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दिन करीब आ रहे घर छोड मंजिल को जाने को बेचैनिय बढ

दिन करीब आ रहे घर छोड मंजिल को जाने को बेचैनिय बढ सी रही,
पर रूकना भी ना है,
चलते-चलते सिख लेना है,
जो ले रहा इम्तहान मेरा उसको मात देना है,
दिन करीब आ रहे घर छोड मंजिल को जाने को बेचैनिय बढ सी रही,
पर रूकना भी ना है,
चलते-चलते सिख लेना है,
जो ले रहा इम्तहान मेरा उसको मात देना है,
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