आप भी कमाल पुछतें हों, टुटें से उसका चाल पुछतें हों। राख ले गई अपने साथ समेट के कितनी लकड़ियाँ, मुर्दें से ये कैसा सवाल पुछतें हों।। और तुम भूल कर भी न बैठना मेरें कनिस्तर पे, पुराने कैलेंडर से क्यों नया साल पुछतें हों।।। तुम जाओं तुम्हें जहां जाना हैं, तुम जाओं तुम्हें जहां तक जाना हैं, जो दफ़न हो चुका उससे क्या मलाल पुछतें हों।।।। ईद, बकरीद, होली, दीवाली, दशहरा मेरा सब तुमसे था, गैरों का दामन थाम के, अब मेरा हाल पुछतें हों । मेरा हाल पुछतें हों आप भी कमाल पुछतें हों, टुटें से उसका चाल पुछतें हों। राख ले गई अपने साथ समेट के कितनी लकड़ियाँ, मुर्दें से ये कैसा सवाल पुछतें हों।।