मैं हवा हूं ना घर है ना ठिकाना... मुझे तो यह भी नहीं पता कहां को है जाना बहुत खूब आता है मुझे आंगन में टंगे कपड़े को सुखाना मैं हवा हूं ना घर है ना ठिकाना... बड़ी बावली बड़ी मस्त मॉली बहुत खूब आता है मुझे इन मौसमों को रिझाना मैं हवा हूं ना घर है ना ठिकाना... कभी इस डाली तो कभी उस डाली कभी शहरों में तो कभी गांव की गलियों में फिरती हूं बन मतवाली मैं हवा हूं ना घर है ना ठिकाना... कभी मझधार में तो कभी सुखी पुआल में मुझे अच्छा लगता है इन अभिमानी पर्वतों से टकराना मैं हवा हूं ना घर है ना ठिकाना #nojoto#alfaj_dil_k