अपेक्षा, जीवन का दूसरा नाम है शायद और मानसिक यंत्रणा का पर्याय भी, जब हम अपने जीवन में किसी से अपेक्षा बढ़ा लेते हैं, बस दुख का बोझ और बढ़ जाता है इन अपेक्षाओं की अतृप्ति /अधूरापन प्रेम की शीतलता को, मधुरता को कोमलता को जला डालता है क्रोध की आग को हवा देकर बढ़ाता है तड़पन, इसलिए अपेक्षाओं को कम करें हम, हर रिश्ते से हर परिचय से अपेक्षाएँ बढ़ाकर आसक्ति का विष न घोलें तो जीवन सुखद हो जाए मन की शांति છિન્ન-भिन्न न हो पाए!! #अपेक्षा# पुरानी डायरी के पन्नों से #22. 11.94