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कि हर बात पर तमाशा, जरूरी है क्या? उम्मीदों के सै

कि हर बात पर तमाशा, जरूरी है क्या? 
उम्मीदों के सैलाब संग, निराशा जरूरी है क्या ?
कुछ प्यार मोहब्बत के अल्फाज भी समेट कर रखा करो, 
हर वक्त बातों में हताशा ,जरूरी है क्या?

©Sachin Sharma
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