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हिज़्र और वस्ल तो रिवाज़ है ज़माने का कोई और बहाना ढू

हिज़्र और वस्ल तो रिवाज़ है ज़माने का
कोई और बहाना ढूंढो तुम साथ निभाने का
वो कहते है हम जा रहे है दूर उनसे
वो बाँह ज़रा थाम ले कस के 
छीन ले बहाना दूर जाने का
ज़िक्र क्या करे हम गैरों के फसाने भला
हमारा तो शौक है अपनो से चोट खाने का
समंदर की चाहत है किनारे छोड़ जाने की

हिज़्र और वस्ल तो रिवाज़ है ज़माने का कोई और बहाना ढूंढो तुम साथ निभाने का वो कहते है हम जा रहे है दूर उनसे वो बाँह ज़रा थाम ले कस के छीन ले बहाना दूर जाने का ज़िक्र क्या करे हम गैरों के फसाने भला हमारा तो शौक है अपनो से चोट खाने का समंदर की चाहत है किनारे छोड़ जाने की #ज़िंदगी

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