झुमका काश मै तेरे कान का झुमका होता रात को बे-खबरी मे जो मचल जाता मैं तो तेरी कान से चुप -चाप निकल जाता मैं सुबह को गिरते तेरी ज़ुल्फो से जब गज़रे का फूल मेरे खो जाने पे होता तेरा दिल कितना मलूल तु मुझे ढूंढ़ती किस शौक़ से घबराहट में अपने महके हुए बिस्तर की हर एक सिलवट में कान से तु मुझे हरगिज़ ना उतारा करती तु कभी मेरी जुदाई ना गवारां करती ✍️नवीन अर्ज़ किया हैं दोस्तों झुमके का एक अलग ही पहचान हैं श्रृंगारो मे उसी पर मेरी ये कविता हैं उम्मीद है आपको पसंद आएगी #झुमका SURAJ choudhary अनुsha Mr. MANEESH 🌹Řøž🌹