आग़ाज़-ए-मोहब्बत अच्छी थी,अंजाम अच्छा क्यूं न हुआ, सारी खुशीयां दे दी खुदा ने, एक तू ही मेरा क्यूं न हुआ। तुमने ही तो कहा था साथ रहूंगी हर दम, वो तेरा ही वादा अब तक पूरा क्यूं न हुआ। वो ख्वाब, वो रात, वो सफर और मैं भी अधूरा रह गया, तुम भी अधूरी रह गई, ये ग़ज़ल भी पूरा क्यूं न हूआ।