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यारा नाउम्मीदी का आलम हैं इस कदर कि उठा भी नहीं पा

यारा नाउम्मीदी का आलम हैं इस कदर
कि उठा भी नहीं पा रहा हूँ मै अपना सर
इंसान कहने मे भी खुद से लग रहा हैं डर
आज तक जिया ऐसे जैसे जीते हैं जानवर
यारा अक्ल सोई रही, मैं रह गया बेखबर
सोचता हूँ अब कैसे करूंगा गुजर बसर

©Kamlesh Kandpal
  #Hopeless