#OpenPoetry थोड़े थोड़े से हम हर फन मैं मौला हो गए, थोड़े थोड़े से हम हर फन मैं मौला हो गए, ना इसके, ना उसके, हर दर के मुसाफिर हो गए। जाना था इस मोड, उस मोड़ पर मुड़ गए, हर बार राह बदलते गए मंजिल से दूर हो गए। ताश के पत्तो का सजाकर महल हम इतरा गए, थोड़ा किसीको हसा गए, थोड़ा किसीको रुला गए। बनना था सिकन्दर तकदीर का, विदूषक बनके रह गए। थोड़े थोड़े से हम हर फन मैं मौला हो गए। -chintan shastri #nojotosangam #shabdbindu