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वो धुँध-धुँध सी बातें तेरी, हर शाम बोहोत रुलाती है

वो धुँध-धुँध सी बातें तेरी,
हर शाम बोहोत रुलाती है;
ये सहमी-सहमी सी रूह मेरी,
अँधेरों में बोहोत चिल्लाती है;
ए-ज़िन्दगी बता,
मेरी किन बातों से नाराज़गी है तुझको;
वरना फिर गिना ग़ुनाहों को मेरे,
जिनकी सज़ाएँ मिली हैं मुझको।।

दिल-ए-दास्ताँ
वो धुँध-धुँध सी बातें तेरी,
हर शाम बोहोत रुलाती है;
ये सहमी-सहमी सी रूह मेरी,
अँधेरों में बोहोत चिल्लाती है;
ए-ज़िन्दगी बता,
मेरी किन बातों से नाराज़गी है तुझको;
वरना फिर गिना ग़ुनाहों को मेरे,
जिनकी सज़ाएँ मिली हैं मुझको।।

दिल-ए-दास्ताँ