वो धुँध-धुँध सी बातें तेरी, हर शाम बोहोत रुलाती है; ये सहमी-सहमी सी रूह मेरी, अँधेरों में बोहोत चिल्लाती है; ए-ज़िन्दगी बता, मेरी किन बातों से नाराज़गी है तुझको; वरना फिर गिना ग़ुनाहों को मेरे, जिनकी सज़ाएँ मिली हैं मुझको।। दिल-ए-दास्ताँ