समंदर की लहरों की तरह ये ज़िन्दगी में बेचैनी क्यों है सब कुछ तोह है मगर फिर भी अधूरी क्यों है बढ़ते चले जा रहे है हम एक खुशहाल आशियाना बनाने पर उस सब में एक कमी क्यों है सब कुछ तोह है पर ये बेताबी क्यों है क्या अपने सब रिश्ते छुट्टे जा रहे अपनी ख़ुशी के खातिर आखिर ये कैफियत दिल में क्यों है