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कसमें खा कर क्यों आज तोड़ रहे हो कुछ क़दम चलकर आज

कसमें खा कर क्यों आज तोड़ रहे हो
कुछ क़दम चलकर आज छोड़ रहे हो 
जो कुछ था वो खाली पुलिंदा था क्या
ज़ख्म भरने देते मुख आज मोड़ रहे हो
कसमें खा कर क्यों.....
उगते सूरज को तो सभी नमन करते हैं
कुछ राज़ की बात थी आज खोल रहे हो
कसमें खा कर क्यों......
पतझड़ का मौसम हमेशा तो रहेगा नहीं
क्यों अब रिश्तों को दौलत से तोल रहे हो
कसमें खा कर क्यों......
कभी अपने भी अंतर्मन में झांका होता
खोकर पाने की चाहत "सूर्य" जोड़ रहे हो 
कसमें खा कर क्यों.......

©R K Mishra " सूर्य "
  #कसमें खाकर  shital sharma Prince~"अल्फ़ाज़" Satyajeet Roy Sethi Ji Ashutosh Mishra
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