लिखने बैठते हैं जभी तेरा ही नाम लिखते है इक तेरे फिर कब कहाँ कोई काम लिखते है मैरी सारी दुनिया है जैसे इक शख्स में बसी उसी को सुबह तो उसी को शाम लिखते हैं इश्क़ के मरीज की जैसे जाना हर दवा है तु तुझी को सुकून तुझी को आराम लिखते हैं नफरत तो करोबार है सियासत की मियां हम शायर है मोहब्बत की जुबान लिखते हैं ©Rajat Bhardwaj प्रियंका गुप्ता (गुड़िया) #IFPWriting