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तुझे चंचल चांदनी समझा था । तू काली रात अंधेरा थी ।

तुझे चंचल चांदनी समझा था ।
तू काली रात अंधेरा थी ।
खुदा ने बख्खसिस दी तुझको ।
तू रंग बदलती दुनिया थी ।

तू लहरों के संग बहती थी ।
आखिर पतवार किनारा थी ।
जो बीच मे डूबा राही था ।
तू पश्चिम पवन सुनामी थी ।

तू वीराने की बेगम थी ।
हर चिराग बुझाये बैठी थी ।
कोहिनूर सा चेहरा तेरा ,
धोके का तरकस सम्भाले बैठी थी ।

तू जंगल की गमगीन दिशा थी ।
झा बाघो की आहट रहती थी ।
तपन से जो ना पीसीज सका ।
तू ऐसे बे बक्त का फेका पथ्थर थी ।

राज प्रताप यादव।
तुझे चंचल चांदनी समझा था ।
तू काली रात अंधेरा थी ।
खुदा ने बख्खसिस दी तुझको ।
तू रंग बदलती दुनिया थी ।

तू लहरों के संग बहती थी ।
आखिर पतवार किनारा थी ।
जो बीच मे डूबा राही था ।
तू पश्चिम पवन सुनामी थी ।

तू वीराने की बेगम थी ।
हर चिराग बुझाये बैठी थी ।
कोहिनूर सा चेहरा तेरा ,
धोके का तरकस सम्भाले बैठी थी ।

तू जंगल की गमगीन दिशा थी ।
झा बाघो की आहट रहती थी ।
तपन से जो ना पीसीज सका ।
तू ऐसे बे बक्त का फेका पथ्थर थी ।

राज प्रताप यादव।