तुझे चंचल चांदनी समझा था । तू काली रात अंधेरा थी । खुदा ने बख्खसिस दी तुझको । तू रंग बदलती दुनिया थी । तू लहरों के संग बहती थी । आखिर पतवार किनारा थी । जो बीच मे डूबा राही था । तू पश्चिम पवन सुनामी थी । तू वीराने की बेगम थी । हर चिराग बुझाये बैठी थी । कोहिनूर सा चेहरा तेरा , धोके का तरकस सम्भाले बैठी थी । तू जंगल की गमगीन दिशा थी । झा बाघो की आहट रहती थी । तपन से जो ना पीसीज सका । तू ऐसे बे बक्त का फेका पथ्थर थी । राज प्रताप यादव।