एक रोज़ जब मिली थी मैं तुमसे हज़ारों ख़्वाब पले थे उस एक पल में क़दमों में मेरे सारी जमीं थी बाहोँ में था सारा आसमान सतरँगी सपनों को पंख लगे थे हज़ार अस्तित्व से मिल रही थी रूह मानो पहली बार वो एक रोज़ मेरी कहानी का अमिट पन्ना हो गया हो जैसे जिसमें तेरे नाम का दस्तख़त हो जैसे हाँ! तुम उस क़िताब की तरह हो जो बीत कर भी नही बीतती! हर बार दर्ज़ कराती है अपनी उपस्थिति और अपने मायने जब-जब पन्ने खुलते हैं यादों के। #वोएकरोज़