दिन तो किसी तरह गुज़र जाते हैं लेकिन रातें दर्द से भरी होती हैं ज़ख़्म तो समय के साथ भर जाते हैं लेकिन निशान रह जाते हैं अपने आरामदेह बिस्तर पर पड़ा मैं करवटें बदलता हूं और सोने की कोशिश करता हूं लेकिन ख़याल मेरे दिमाग़ में उमड़ रहे हैं और जमा हो गए हैं बीते हुए दिनों की चुभती हुई रोशनी में बिखर रहा हूं मैं टुकडे़-टुकडे़ मेरे जीवन का अंधेरा अंधेरे में ज़्यादा उजागर हो उठता है और अब मैं उन सबको आवाज़ देने की कोशिश कर रहा हूं दिल को ज़ुबान दे रहा हूं