बादलो की आवाज सुन सहम जाती थी अंधेरे से वो आज भी डरती तो होगी कैसे भूली होगी उसका सहारा था मैं मेरे कंधे के सहारे याद करती तो होगी फिर सोचता हूँ कलाकार थी वो तब जा अब नाटक ही करती होगी बातूनी थी पर सबको याद रखती थी जिक्र मेरे भी तो किसी से करती तो होगी बादलों की आवाज सुन सहम जाती थी अंधेरे से वो आज भी डरती तो होगी अंधेरे से डर Ishita😀😀😀