हर वो शाम उधार है तुम पर जब मुझे रोता बिलखता छोड़ | हिंदी कविता
"हर वो शाम उधार है तुम पर
जब मुझे रोता बिलखता छोड़
तुम चले जाते थे अपनी दुनिया में मगन होने
दरवाजे पर घंटों बैठकर जो बहाए हैं आंसू मैंने
वो दिल से निकली सदाएं उधार हैं तुम पर
मेरा हर वो पल जो इंतजार में है कटा
हर वो लम्हा उधार है तुम पर।"
हर वो शाम उधार है तुम पर
जब मुझे रोता बिलखता छोड़
तुम चले जाते थे अपनी दुनिया में मगन होने
दरवाजे पर घंटों बैठकर जो बहाए हैं आंसू मैंने
वो दिल से निकली सदाएं उधार हैं तुम पर
मेरा हर वो पल जो इंतजार में है कटा
हर वो लम्हा उधार है तुम पर।