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बहुत सी ख़्वाहिशों को हमनें मारा है, तब जाकर ज़िंद

बहुत सी ख़्वाहिशों को हमनें मारा है,
तब जाकर ज़िंदगी तुझको संवारा है,

तू न समझ पायेगी मेरी क़ुर्बानियों को, 
कुछ जीतने के लिए बहुत कुछ हारा है, 

पता नहीं क्यों इसको सताते हो तुम? 
मुद्दतों से तो मेरा दिल बस तुम्हारा है, 

किसी की बर्बादी,किसी की खुशी है,
कितना बदनसीब ये टूटता हुआ तारा है, 

बलायें भी मेरे पास आने से डरती है, 
जब से माँ ने सिर का सदका उतारा है, 

बेशक दौलत तेरी ज़रूरत है 
मगर दौलत-ए-ज़मीर मुझे सबसे प्यारा है.

©Ritu Tripathi
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