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पीठ में घोंपे हैं खंजर फिर भी ऐतबार कर रहे ह







पीठ में घोंपे हैं खंजर फिर भी ऐतबार कर रहे हो।
बना उसको फेवरेट नेशन खूब कारोबार कर रहे हो।
शर्म नहीं आती तुम्हें तिरंगे में लिपटी लाशें देखकर।
क्या दिल्ली लुटने का इंतजार कर रहे हो।।
विनोद विद्रोही






पीठ में घोंपे हैं खंजर फिर भी ऐतबार कर रहे हो।
बना उसको फेवरेट नेशन खूब कारोबार कर रहे हो।
शर्म नहीं आती तुम्हें तिरंगे में लिपटी लाशें देखकर।
क्या दिल्ली लुटने का इंतजार कर रहे हो।।
विनोद विद्रोही