कवि के तन के अंदर उठता रहता है सदैव शब्दो का उफनता समंदर ऐसे थोड़े ही न बन जाता है कोई शब्द-रस का पयम्बर। ~आशुतोष यादव Kittu❤ deepti😊 ..SShikha..