निशब्द हूँ, स्तब्ध हूँ, इस ज़िन्दगी को देखकर..! जिस ज़िन्दगी को नोच के इंसान खुद ही खा रहा..!! मान क्या, सम्मान क्या, ये जान भी ना छोड़ते..! इंसान हैं य़ा भेडिये, समझ में कुछ ना आ रहा..!! जब राह से गुजरी कभी, वो लाज चूनर ओढ़कर..! तो ज़ालिमो ने शर्म को भी, रख दिया निचोड़कर..!! वो निकली थी घर से, तुम्हारे डर से करने सामना..! पर बेशरम तू हो गया , बढ़ने लगी जब कामना..!! तू कुछ तो कर देता रहम, उस बेकसूर ज़िस्म पर...! मिट गयी थी जब हवस, तो देख लेता सोच कर..!! करने से पहले काम ये, तू वक़्त से कुछ सीख ले..! ऐ ज़िस्म के भूखे, तू घर में माँ, बहन को देख ले..!! खामोश हूँ, आक्रोष हूँ, इंसानियत ये देखकर..! हैवानियत का रुप जब, इंसान रखता जा रहा..!! है कर्म क्या, कुकर्म क्या, परवाह नहीं हैवान को...! इंसान हैं य़ा भेडिये, समझ में कुछ ना आ रहा..!! निशब्द हूँ, स्तब्ध हूँ, इस ज़िन्दगी को देखकर..! जिस ज़िन्दगी को नोच के इंसान खुद ही खा रहा..!! #Anil_kr...✍ निशब्द हूँ, स्तब्ध हूँ, इस ज़िन्दगी को देखकर..! जिस ज़िन्दगी को नोच के इंसान खुद ही खा रहा..!! #Anil_kr...✍