योंही चलता रहेगा यह मुसाफ़िर अजल तक रुकेंगे न कदम देखना मुक़म्मल ग़ज़ल तक इन अधकच्चे जायको का अपना अलग मजा है रात का सफर भी तो है शाम से सहर तक कुँवर सुरेन्द्र योंही चलता रहेगा यह मुसाफ़िर अजल तक रुकेंगे न कदम देखना मुक़म्मल ग़ज़ल तक इन अधकच्चे जायको का अपना अलग मजा है रात का सफर भी तो है शाम से सहर तक