किताबों की आड़ में यह जिंदगी जरा चढ़ने लगी, अक्षर-अक्षर सा रोम रोम में महक इसकी खिलने लगी। कभी नागफन के कांटे सा वीरान होकर चुभने लगी, तो कभी जवानी को रँगते-रँगते रेत सी फिसलने लगी। कभी समंदर को आधा चीर पतवार हारकर डूबने लगी, तो कभी कद ऊंचा कर अंधेरी छाया बिखेरने लगी । कभी घड़ी की सुंई को पछाड़ते हुए तेज दौड़ने लगी, तो कभी हृदय की धड़कन थमती हुई घबराने लगी। कभी आंसुओं की धार जमकर मूर्तियां बनने लगी, तो कभी पौष माह में आत्मा मोम से पिघलने लगी। ज्ञान । #hindiwriter #Hindilover #hindialfaaz #hindistory