बचपन और रूठना ना पाने की खुशी, ना खोने का डर। ना मरने का डर, ना भबिष्य की फिकर। हम सबके थे, और सभी थे मेरे हम सफर। जिंदगी यूँ ही चलती रही, दिन यूँ ही गुजरते रहे, पता ही ना चला कि कब गए वो दिन गुज़र। में तो जिंदा रहा पर मेरी वो खुशियाँ गई यूँ ही बिखर। एक कदम जिंदगी की और Sandeep