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इश्क और मेरी बनती नहीं है साहब, वो गुलामी चाहता है

इश्क और मेरी बनती नहीं है साहब,
वो गुलामी चाहता है और मै  बचपन से आजाद हूँ..
इश्क और मेरी बनती नहीं है साहब,
वो गुलामी चाहता है और मै  बचपन से आजाद हूँ..