जिससे अब तक मिली नहीं वो स्वप्न में क्यूं आने लगे सिर पर मुकुट कानों में कुंडल मुझको क्यूं भाने लगे गले में पुष्प माला होंठों पर मुस्कान रंग सावला मनमोहक काया मुझको क्यूं लुभाने लगे उसकी मीठी मुरली धुन सुन खिल उठा मेरा तन जैसे खिले सरोवर में कमल उसके दर्शन पाने को बेचैन हुआ जाए मेरा मन धीरे धीरे मुझको आकर्षित अपनी ओर वो करने लगे हो जैसे कोई विष्णु अवतार कन्हैया केशव मेरे गोपाल झूम उठी मैं ख़ुद के स्वप्न में जैसे कोई श्याम दीवानी धीरे धीरे मेरे कन्हैया मुझको क्यूं अपना बनाने लगे Munger,Bihar #InspireThroughWriting