|| श्री हरि: ||
6 - न्यायशास्त्री
'अरे, तूने फिर ये कपि एकत्र कर लिये?' माँ रोहिणी जानती हैं कि इस नीलमणिके संकेत करते ही कपि ऊपर से प्रांगण में उतर आते हैं। उन्हें डर लगता है, कपि चपल होतें हैं और यह कृष्णचन्द्र बहुत सुकुमार है। यह भी कम चपल नहीं है। चाहे जब कपियों के बच्चों को उठाने लगता है। उस दिन मोटे भारी कपि के कन्धे पर ही चढ़ने लगा था। कपि चाहे जितना इसे माने, अन्नत: पशु ही हैं। वे इसे गिरा दे सकते हैं।
माता बार-बार मना करती है कि - 'कपियों को प्रांगण में मत बुलाया कर! मैं इनके लिए भवन के ऊपर रोटी फेंक दिया करूँगी।' लेकिन श्याम मानता नहीं है। माता और मैया यशोदा के तनिक हटते ही हाथ हिलाकर कपियों को बुला लेता है।
ये कपि भी तो कहीं जाते नहीं हैं। पता नहीं कबकी कन्हाई से इनकी मित्रता है। रात्रि में भी नन्द भवन के ऊपर अथवा आसपास ही रहेंगे। प्रातःकाल होते ही उछल-कूद करने लगते हैं। श्याम के साथ लगे फिरते हैं। यह कहीं जाय तो सब इसके साथ लगे जायेंगे। फिर कोई एक भी भवन के ऊपर नहीं दिखेगा। #Books