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शुक्रिया उसका, जो रोज़ इक ग़म देता है मुझे। बदौलत

शुक्रिया उसका, जो रोज़ इक ग़म देता है मुझे। 
बदौलत उसीकी, इक ग़ज़ल बन जाती है मेरी।।

शुक्रिया उसका, जो रोज़ इक ग़म देता है मुझे। बदौलत उसीकी, इक ग़ज़ल बन जाती है मेरी।। #Books

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