बचपन और मेला जमी पर रेंगता बचपन सजाता ज़िन्दगी का स्वप्न वो लोगो का हुजूम,किलकारी का शोर छत पर पंख खोलता मोर वो रंगों-रंगों सी रंगोली सा मेला तपती धरा पर दौड़ता अकेला वो गांव,रेतीले रास्ते और नीम की छांव मैं,मेरा बचपन,वो मेला और मेरे नंगे पांव मेला और बचपन