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बचपन और मेला जमी पर रेंगता बचपन सजाता ज़िन्दगी का

बचपन और मेला  जमी पर रेंगता बचपन
सजाता ज़िन्दगी का स्वप्न

वो लोगो का हुजूम,किलकारी का शोर
छत पर पंख खोलता मोर

वो रंगों-रंगों सी रंगोली सा मेला
तपती धरा पर दौड़ता अकेला

वो गांव,रेतीले रास्ते और नीम की छांव
मैं,मेरा बचपन,वो मेला और मेरे नंगे पांव मेला और बचपन
बचपन और मेला  जमी पर रेंगता बचपन
सजाता ज़िन्दगी का स्वप्न

वो लोगो का हुजूम,किलकारी का शोर
छत पर पंख खोलता मोर

वो रंगों-रंगों सी रंगोली सा मेला
तपती धरा पर दौड़ता अकेला

वो गांव,रेतीले रास्ते और नीम की छांव
मैं,मेरा बचपन,वो मेला और मेरे नंगे पांव मेला और बचपन

मेला और बचपन #कविता